Hypothesis
समाजिक घटनाओं के अध्ययन में उपकल्पना का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसका निर्माण प्रयोग और उपादेयता वैज्ञानिक पद्धति का एक महत्वपूर्ण चरण होता है। प्राकल्पना के अभाव में विषय की दिशा और उसका क्षेत्र अनिश्चित रहता है जिसके कारण शोधकर्ता दिशाविहीन हो जाता है। इसलिए शोधकर्ता के लिए यह आवश्यक होता है कि वह किसी अन्य अपरिचित शोध कार्य में यूं ही कदम ना रखें बल्कि अपनी कल्पना, अनुभव या किसी अन्य स्त्रोतों के आधार पर एक तर्क वाक्य का निर्माण कर ले जिसे शोध के दौरान परिक्षित किया जाता है। पी वी यंग ने कामचलाउ प्राकल्पना के निर्माण को वैज्ञानिक पद्धति का पहला चरण बताया है। गुड्डे और हॉट के मुताबिक सामाजिक शोध में एक अच्छी प्राकल्पना का निर्माण का अर्थ शोध के आधे कार्य का पूरा हो जाना माना जाता है।
प्राकल्पना का शाब्दिक अर्थ - प्राकल्पना अंग्रेजी के शब्द हाइपोथिसिस का हिंदी अनुवाद है। यह शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों से मिलकर बनता है। इसका पहला शब्द ीलचव है अर्थात इमसवू है जिसका अर्थ होता हैं नीचे तथा दूसरा शब्द जीमेपे अर्थात जीमवतल है जिसका अर्थ होता है विचार या सिद्धांत। इस प्रकार इसका पूर्ण अर्थ हुआ इमसवू जीमवतल अर्थात सिद्धांंत से नीचे या सिद्धांत का पूर्व कथन। प्राकल्पना में भी प्राक् का अर्थ पूर्व और कल्पना का अर्थ विचार यानि पूर्व का विचार या सिद्धांत ही होता है। सरल शब्दों में प्राकल्पना का अर्थ होता है एक ऐसा विचार या सिद्धांत जिसे शोधकर्ता अध्ययन के लक्ष्य के रूप में रखता है और उसकी जांच करता है।
अर्थ - प्राकल्पना को सामान्यतः एक कामचलाउ लोक सामान्यीकरण माना जाता है जिसकी शोध के दौरान परीक्षा की जाती है। वैज्ञानिक आधारों पर एक प्राकल्पनाओं को दो से अधिक चरों के मध्य संबंध का अनुमानित विवरण कहा जाता है। प्रारंभिक जानकारी के आधार पर किया गया पूर्वानुमान जिसके आधार पर संभावित शोध को एक निश्चित दिशा प्रदान की जा सके, प्राकल्पना कहलाता है और भी स्पष्ट रूप में यह कहा जा सकता है कि एक प्राकल्पना दो या दो से अधिक चरों के बीच होने वाले संबंध का अनुभावात्मक रूप से परीक्षा करने योग्य कथन है। वैज्ञानिकों ने प्राकल्पना को एक अस्थायी अनुमान, कामचलाउ सामान्यीकरण, कलात्मक विचार, पूर्वानुमान और अनुमानात्मक कथन बताया है। प्राकल्पना एक प्रकार का सर्वोत्तम अनुमान होता है जो कुछ शर्ते रखता है जिनके परिक्षण की आवश्यकता होती है।
प्राकल्पना की परिभाषा -
प्राकल्पना को विभिन्न विद्वानो ने अपने अपने दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है जिनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाए निम्नलिखित है।
लुण्ड बर्ग के अनुसार प्राकल्पना एक सामयिक अथवा कामचलाउ सामान्यीकरण या निष्र्कष है। जिसकी सत्यता की परीक्षा बाकी हैं। आरंभिक स्तर पर प्राकल्पना कोई भी अनुमान, कल्पनात्मक विचार, सहज ज्ञान या और कुछ हो सकता हैंै, जो कि क्रिया या शोध का आधार बन जाए ।
बोगार्डस के मुताबिक प्राकल्पना परीक्षण के लिए प्रस्तुत की गई प्र्रस्थापना है।
मान के अनुसार प्राकल्पना एक अस्थायी अनुमान है।
बैली के अनुसार एक प्राकल्पना एक ऐसी प्रस्थापना है जिसे परीक्षण के रूप में रखा जाता है। और जो दो या दो से अधिक परिवत्र्यो के विशिष्ट संबंधों के बारे में भविष्यवाणी करती है।
डोब्रिनर के मुताबिक प्राकल्पनाएं ऐसे अनुमान है जो यह बताते हैं कि विभिन्न तत्व अथवा परिवत्र्य किस प्रकार अन्र्त संबंधित है।
विशेषताएं-
अ. गुड्डे और हॉट ने प्राकल्पनाओं की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है।
1 स्पष्टता - प्राकल्पनाएं अवधारणाओं के दृष्टिकोण से स्पष्ट होना चाहिए। किसी भी स्तर पर अस्पष्टता वैज्ञानिक सिद्धांत के प्रतिकूल होती है।
2 अनुभव सिद्धता - अध्ययन में प्राकल्पना ऐसी होनी चाहिए जिसकी तथ्यों द्वारा जांच की जा सके। प्राकल्पना अगर आर्दशों को स्पष्ट करने वाली होगी तो उसकी सत्यता की परीक्षा आसानी से की जा सकती है। प्राकल्पना ऐसे तथ्यों, कारकों एवं चरों से संबंधित होना चाहिए जो समाज या अध्ययन क्षेत्र में जाकर एकत्रित किए जा सकें साथ ही उनकी विश्वसनीयता की जांच भी की जा सके।
3 विशिष्टता- सामान्य प्राकल्पनाओं द्वारा सही और सटीक निष्कर्ष पर पहुंचना संभव नहीं इसलिए प्राकल्पनाओं को विशिष्ट और उपयोगी होना चाहिए। प्राकल्पना अध्ययन विषय के किसी विशेष पहलु से जुड़ी होना चाहिए। प्राकल्पना का सीमित, विशिष्ट और निश्चित पक्ष से संबंधित होना चाहिए।
4 उपलब्ध प्रविधियों से संबंद्ध- प्राकल्पना एक प्रस्थापना होती है। जो तथ्यों का परस्पर कारण प्रभाव संबंध बताती है और जिनकी जांच करना अभी बाकी है। जो कि वैज्ञानिक प्रविधियों द्वारा की जाती है। प्राकल्पना का निर्माण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए कि उसकी सत्यता की जांच उपलब्ध प्रविधियों के द्वारा की जा सके।
5 समूह से संबंधित होना- सिद्धांतों से संबंधित प्राकल्पनाओं को सिद्धांत के समूह से संबंधित होना चाहिए।
6 सरलता- किसी भी प्राकल्पना में सरलता बनाए रखने के लिए सीमित कारणों का अध्ययन करना चाहिए। अनावश्यक रूप से अधिक कारकों को शोध में शामिल नहीं करना चााहिए। पीवी यंग के अनुसार सरलता एक तेज धार वाला यंत्र है जो व्यर्थ की प्राकल्पना और विवेचना को काट भी सकता है।
7 मार्गदर्शन के लिए भी प्र्राकल्पना उपयोगी होना चाहिए।
8 प्राकल्पना किसी विषय के संबंध में अस्थायी हल देने का साधन हैं
9 प्राकल्पना उपलब्ध पद्धतियों और साधनों से संबंधित होना चाहिए।
10 परिकल्पना में अतिशोयक्तिपूर्ण भाषा का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
11 प्रयोगसिद्धता का गुण होना चाहिए।
12 प्राकल्पना व्यावहारिक और यर्थाथ पर आधारित होना चाहिए।
13 प्राकल्पना को पूर्व में निर्मित सिद्धातों पर खरा उतरना चाहिए।
14 प्राकल्पना समस्या से सीधे संबंधित होना चााहिए।
15 प्राकल्पना और उसके तहत एकत्र किए गए तत्व उपयोगी होना चाहिए।
प्राकल्पना का विकास-
किसी भी वस्तु या अवधारणा का विकास एकाएक न होकर कुछ चरणों और प्रक्रियाओं से गुजर कर होता है। प्राकल्पना भी इसका अपवाद हैंं। एक विद्वान के मुताबिक प्राकल्पनाओं का विकास करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि प्राकल्पनाओं में लचीलापन बना रहे इनके विभिन्न विकल्पोें को स्वीकार और अपवादांें को स्पष्ट किया जाए । इस बात का खयाल रखा जाए कि अधिकतर सामाजिक परिस्थितियों में हम उन कारकों का सफलतापूर्वक पता लगा सकते हैं। जिनकी हमें तलाश है।
आमतौर पर प्राकल्पना के विकास की सामान्य प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है।
1 सभी विकल्पीय कार्यो को ज्ञात किया जाना चाहिए ।
2 शोध से संबंधित महत्वपूर्ण चरों का चयन किया जाना चाहिए।
3 प्राकल्पना से संबंधित आनुभविक तथ्यों का संकलन किया जाना चाहिए।
4 प्राकल्पना की स्थापना की जाना चाहिए।
5 प्राकल्पनाओं के आशय का ज्ञान होना चाहिए ।
6 व्यावहारिक प्राकल्पनाओं का निर्माण करना चाहिए।
7 व्यावहारिक प्राकल्पनाओं के परीक्षण के लिए परिस्थितियों प्रविधियों एवं उपकरणों आदि का उल्लेख किया जाना चाहिए।
8 प्राकल्पना की जांच के लिए उपयुक्त माप का चयन किया जाना चाहिए।
9 मापों के प्रयोग से संबंधित मान्यताओं को निर्धारित किया जाना चाहिए।
10 प्राकल्पनाओं के उपयुक्त तथ्यों को एकत्र करके सत्यता की जांच की जानी चाहिए।
उपर्युक्त चरणों से होकर ही प्राकल्पना का विकास होता है।
प्राकल्पना के प्रकार-
हेष ने परिकल्पना को दो भागों में विभक्त किया है।
1 सरल प्राकल्पना- जब किन्ही दो चरों में परस्पर सहसंबंधों का अध्ययन और परीक्षण किया जाता है इसे सरल प्राकल्पना कहा जाता है।
2 जटिल प्राकल्पना- इस तरह की प्राकल्पना में एक से अधिक चरों के सहसंबंधों का अध्ययन किया जाता है।
गुड्डे और हॉट ने प्राकल्पना को तीन प्रकारों में विभाजित किया है।
1 आनुभाविक एकरूपता से संबंधित प्राकल्पनाएं- इसके अन्र्तगत वे प्राकल्पनाएं आती हैं जो अनुभवात्मक समरूपता के अस्तित्व की विवेचना करती है। इस स्तर की प्राकल्पनाएं सामान्य तथा सामान्य ज्ञान पर आधारित कथनो की वैज्ञानिक परी़क्षा करती है।
2 जटिल आदर्श प्रारूप से संबंधित प्रकल्पनाएं- इन प्राकल्पनाओं का उद्देश्य प्रचलित तार्किक और अनुभवात्मक एकरूपताओं के संबंधों का परीक्षण करने के लिए किया जाता है। यह प्राकल्पनाएं विभिन्न कारको में तार्किक अन्र्तसंबंध स्थापित करने के उद्देश्य से बनाई जाती है। यथार्थ में अधिक जटिल शोध के क्षेत्र में फिर से शोध करने के लिए उपकरणों और समस्याओं का निर्माण करना इस प्रकार की प्राकल्पनाओं का महत्वपूर्ण कार्य है।
3 विश्लेषणात्मक चरों से संबधित प्राकल्पनाएं- इस प्रकार की प्राकल्पनाएं चरों के तार्किक विश्लेषण के अलावा विभिन्न चरों में आपसी गुणों का भी विश्लेषण करती है। इनका उद्देश्य प्रभावों का तार्किक आधार तलाश करना भी होता है। विश्लेषणात्मक चरों से संबंधित प्राकल्पनाएं बहुत अधिक अमूर्त प्रकृति की होती हैं। इनमें चर का अन्य चरों पर क्या प्रभाव होता है। तथा चरों का आपस में क्या प्रभाव होता हैं इसका गहनता से अध्ययन किया जाता है। इनका प्रयोग विशेष रूप से प्रयोगात्मक शोधों के लिए किया जाता है। ग्रामीण विकास कार्यक्रम, जाति व्यवस्था, नेतृत्व और निर्धनता आदि ऐसी समस्याए है जिनका अध्ययन अनेक चरों से संबंधित होता है। इसलिए इसमें विश्लेषणात्मक चरों से संबंधित प्राकल्पनाओं का प्रयोग किया जाता है।
एम एच गोपाल ने प्राकल्पनाओं को दो भागों में बांटा है।
1 मौलिक प्राकल्पना - इसमें निम्न स्तरीय विचारधाराएं होती है। जो ज्यादातर संकलित की जाने वाली सामग्री को बताती है।
2 विशुद्व प्राकल्पनाएं- ये वह प्राकल्पनाएं है जो वास्तविक रूप से अधिक महत्वपूर्ण होती है। इन प्राकल्पनाओं को निम्न उपभागों में बांटा गया है।
ं सामान्य स्तरीय प्राकल्पनाएं
जटिल आर्दश प्राकल्पनाएं
जटिलता अन्र्तसंबंधित चर प्राकल्पनाएं।
मैक गुइगन ने इसे दो भागों में विभक्त किया है।
1 सार्वभौमिक प्राकल्पनाएं- सार्वभौमिक कल्पनाएं वो है, जिनका संबंध अध्ययन किए जाने वाले सभी चरों से सभी समय एवं सभी स्थानों पर रहता है।
2 अस्तित्वात्मक प्राकल्पना- जो प्राकल्पना चरों के अस्तित्व को उचित साबित करती है, उसे आस्तित्वात्मक प्राकल्पना कहते हैं...अनिल अत्री ..............
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