पुष्प की अभिलाषा- माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi)
चाह नहीं मैं सुरबाला केगहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं, प्रेमी-माला मेंबिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शवपर हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर परचढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमालीउस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ानेजिस पर जावें वीर अनेक ।।
बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY
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