Friday, October 2, 2009

देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

- रामावतार त्यागी
मन समर्पित, तन समर्पितऔर यह जीवन समर्पितचाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ
मॉं तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचनकिंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदनथाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भीकर दया स्वीकार लेना यह समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पितरक्त का कण-कण समर्पितचाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ
मॉंज दो तलवार को, लाओ न देरीबॉंध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरीभाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ीशीश पर आशीष की छाया धनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पितआयु का क्षण-क्षण समर्पित।चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ
तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दोगॉंव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दोआज सीधे हाथ में तलवार दे-दोऔर बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो
सुमन अर्पित, चमन अर्पितनीड़ का तृण-तृण समर्पितचहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ

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