Sunday, May 6, 2012

Questionare प्रश्नावली


Questionare
समाजिक शोध और सर्वेक्षण के क्षेत्र में सामग्री एकत्रित करने के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है, उनमें प्रश्नावली भी एक है। इसका महत्व तथ्य संकलन और आंकडे़ एकत्रित करने के लिए बहुत होता है। यह प्राथमिक तथ्यों को संकलित करने में बहुत योगदान देती है। इसमें विषय समस्या से संबंधित प्रश्न रहते हैं। आमतौर पर सर्वेक्षण के लिए इसके अलावा अनुसूची का भी प्रयोग किया जाता है। क्योंकि ये दोनों ही समान सिद्धांतों पर आधारित होती है। इसी आधार पर लुण्डबर्ग ने प्रश्नावली को एक विशेष प्रकार की अनुसूची माना है जो प्रयोग की दृष्टि से अपनी निजता स्थापित करती है। 
अर्थ-
       साधारणतया किसी विषय से संबंधित लोगों से सूचना प्राप्त करने के लिए बनाए गए प्रश्नों की सुव्यवस्थित सूची को प्रश्नावली की संज्ञा दी जाती है। अर्थात प्रश्नावली अनेक प्रश्नों से युक्त एक सूची होती है जिसमें अध्ययन विषय  से जुड़े  विभिन्न पक्षों के बारे में पहले से तैयार किए गए प्रश्नों का समावेश होता है। शोधकर्ता इसे डाक के माध्यम से उत्तरदाताओं को भेजते है। उत्तरदाता उसे पढ़कर, समझकर और उसमें पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भरकर पुनः डाक से शोधकर्ता के पास भेज देता है। आम तौर पर यह कहा जा सकता है कि विषय समस्या से संबंधित तथ्यों को संग्रहित करने के उद्देश्य से निर्मित क्रमबद्ध प्रश्नों की वह सूची जिसका उपयोग डाक द्वारा किया जाता है प्रश्नावली कहलाती है।
परिभाषा- 
        जे डी पोप ने लिखा है कि एक प्रश्नावली को प्रश्नों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसका उत्तर सूचनादाता के बिना एक शोधकर्ता अथवा प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता से देना होता है। 
बोगार्डस ने प्रश्नावली को परिभाषित करते हुए लिखा है। प्रश्नावली विभिन्न व्यक्तिओं को उत्तर देने के लिए दी गई प्रश्नों की एक तालिका है। 
प्रश्नावलियो की निर्माण विधियां -
                       प्रश्नावली प्रविधि तथ्य एकत्रित करने की एक प्रमुख प्रविधि है। इसलिए यह आवश्यक होता है कि प्रश्नावली का निर्माण इस तरह से किया जाए कि उपयोगी साबित हो । प्रश्नावली का निर्माण जितना सावधानीपूर्वक एवं सुव्यवस्थित रूप से किया जाता है। शोध के लिए सामग्री का संकलन उतना ही उपयोगी हो जाता है। प्रश्नावली में सूचनादाताओं को स्वयं ही प्रश्नों को समझकर उनका उत्तर देना होता है। इसलिए प्रश्नावली के निर्माण के समय सूचनादाताओं के ज्ञान के आधार क्षेत्र को बढ़ाना होता है। इसमे बिना शोधकर्ता की मदद के ही उत्तर देना होता है। इसलिए प्रश्नावली का निर्माण इतना सरल और स्पष्ट होना चाहिए कि उत्तरदाता उसे आसानी से भरकर भेज सके। प्रश्नावली की रचना को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। जो निम्नानुसार है-
 1 अध्ययन की समस्या
  
 2 प्रश्नों की उपयुक्तता
 3 बाहरी आकार
1 अध्ययन की समस्या- प्रश्नावली का निर्माण करते समय सबसे पहले यह आवश्यक होता है कि अध्ययन की समस्या को भली भांति समझा जाए। न केवल इसे समझना बल्कि इसका विश्लेषण करना भी आवश्यक है। इसमें निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
1 पूर्ण जानकारी
2 क्षेत्र एवं सूचनादाता
3 अध्ययन की इकाई
1 पूर्ण जानकारी- प्रश्नावली का निर्माण करते समय अध्ययन समस्या की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।  इसे न केवल समझ लेना चाहिए बल्कि पूर्णतया देख’-परख भी लेना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो अध्ययनकर्ता को प्रश्न रचना के समय अनेक समस्याओं का सामना करना पड़  सकता है। इसलिए अध्ययनकर्ता का  समस्या के विभिन्न पक्षों से परिचित होना आवश्यक होता है। अध्ययनकर्ता को चाहिए कि वह विषय से संबंधित विशेषज्ञों से भी पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ले। ऐसा करने पर ही प्रश्नावली का निर्माण उचित चरणों में पूरा हो सकेगा।
2 क्षेत्र और सूचना दाता - प्रश्नावली का निर्माण करते समय क्षेत्र और सूचनादाता के बारे में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक होता है। अर्थात क्षेत्र का विस्तार कितना है और सूचनदाताओं की संख्या कितनी है इन बातों का ध्यान आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए यदि भौगोलिक क्षेत्र बड़ा हो और समस्या की प्रकृति सामान्य हो तो सूचनादाता की संख्या अधिक होती है। इसमें निर्दशन प्रणाली के माध्यम से सूचनादाताओं की संख्या का निर्धारण करना पड़ता हैं।
3 अध्ययन की इकाई - प्रश्नावली का निर्माण करते समय यह स्पष्ट करना होता है,कि अध्ययन की इकाई क्या है। ऐसा करना इसीलिए आवश्यक होता है ताकि उत्तरदाता इन इकाईयों को एक ही अर्थ में समझे ताकि उसे एक ही प्रकार की सूचनाएं प्राप्त की जा सके । उदाहरण के लिए यदि बालकों का अध्ययन करना हो प्रश्नावली में बालकों की आयु का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
4 प्रश्नों की उपयुक्तता - इससे तात्र्पय यह है कि प्रश्नावली में किसी भी प्रश्न को शामिल करने के पूर्व वह विषय से संबंधित सूचना का संकलन करने में किस हद तक सहायक होगा। अनुपयुक्त प्रश्नों के शामिल होने से धन,समय और श्रम का दंुरूपयोग होता है और न ही अपेक्षित सफलता मिल पाती है। इसलिए प्रश्नों का उपयुक्त होना अंत्यत आवश्यक होता है। प्रश्न का निर्माण सरल,सटीक और व्यवस्थित होना चाहिए क्योंकि प्रश्नावली निर्माण के समय हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उत्तरदाता को बिना शोधकर्ता की सहायता से ही प्रश्नो को उत्तर देना रहता है। अर्थात प्रश्न हर ढंग से उपयुक्त हो । उपयुक्त प्रश्नो का अपना एक अलग महत्व होता है।
प्रश्नों की उपयुक्तता के नजरिये से निम्न बातें आवश्यक होती है।
1 प्रश्नों की स्पष्टता और विशिष्टता- प्रश्नावली का निर्माण करते समय शोधकर्ता को हमेशा इस बात का ध्यान रखना होता है कि प्रश्न स्पष्ट और विशिष्ट हो। अर्थात ऐसे प्रश्नों के निर्माण करने से हमेशा बचा जाना चाहिए जो अस्पष्ट और अनिश्चित वाले हो या फिर भ्रामक हो । अ्रगर ऐसे प्रश्नों का समावेश प्रश्नावली मे होगा तो वह दोषपूर्ण बन जाएगी जिससे शोध का उद्देश्य भी पूरा नही होगा । इसके साथ ही अस्पष्ट, दोषपूर्ण, द्विअर्थी और अप्रचलित प्रश्नों के प्रयोग से भी बचना चाहिए। प्रश्नो के निर्माण में विशिष्ट शब्दावली का भी प्रयोग नही किया जाना चाहिए।
2 सरल प्रश्न- अगर प्रश्नावली में सरल प्रश्नो का समावेश होगा तभी प्रश्नों की उपयुक्तता साबित होगी । अगर प्रश्न सरल होंगें तो सामान्य ज्ञान वाला भी उसे ठीक से समझेगा और उसका सही सही जवाब देगा। साथ ही प्रश्नों के सरल रहने से अध्ययनकर्ता के बिना भी उसका उत्तरदाता अपेक्षित अर्थ लगाकर प्रश्नो का सही सही जवाब देगा। क्योंकि खुद प्रश्नकर्ता उत्तरदाता के पास नही होता इसलिए सरल प्रश्न होना आवश्यक होता है।
3 संक्षिप्त और श्रेणीबद्व उत्तर - प्रश्नावली के निर्माण में इस बात का ध्यान देना चाहिए कि उसमें प्रश्न संक्षिप्त ही रहें। अगर प्रश्न छोटे होगें तो प्रश्नावली भरते समय उत्तरदाता जवाब देने में बोर नहीं होगा ना ही उसे कोई हिचकिचाहट होगी । प्रश्न न केवल न संक्षिप्त होने चाहिए बल्कि उनमें क्रमबद्वता भी होनी चाहिए। यदि यह उत्तर हां या न में होतो यह प्रश्न ज्यादा ठीक माना जाता है।साथ ही बहुविकल्पनात्मक प्रश्न भी सही होते है।क्यों कि इसमें उत्तर दाता को अपने मन से विकल्प चुने जाने की आजादी होती है।
4 वैषयिक प्रश्न- प्रश्नावली के निर्माण में इसकी उपयुक्तता इस बात पर निर्भर करती है वैषयिक प्रश्नों का समावेश इसमें किया जाए। इस दौरान प्रश्नों में किसी प्रकार का झुकाव नही होना चाहिए। अ्र्रगर इस तरह के प्रश्न इसमें शामिल है तब उत्तरदाता से सही और वास्तविक उत्तर निकलवाए जा सकेगें।
5 कम प्रश्न- प्रश्नावली में कम से कम प्रश्नो का समावेश करना चाहिए। इससे प्रश्नावली जल्दी भर जाएगी और उत्तरदाता की अभिरूचि भी बनी रहेगी। अधिक प्रश्नों के समावेश से प्रश्नावली  के निर्माण में समय,धन और श्रम तीनों की बर्बादी होती है।
6 बचाव वाले प्रश्न- प्रश्नावली में उत्तरदाता के गोपनीय जीवन से संबंधित प्रश्नों को शामिल नही किया जाना चाहिए। गोपनीय और गहन सूचनाओं वाले प्रश्नों से हमेशा बचना चाहिए क्योंकि ऐसे प्रश्नों के उत्तर कोई भी आसानी से नहीं देता है। अपराधी प्रवृत्ति और यौन व्यवहार से संबंधित प्रश्न इसी तरह के होते हैं। इसी तरह वैयक्तिक, भावनात्मक और प्रतिष्ठा वाले प्रश्नों से भी बचा जाना चाहिए। इसके अलावा पक्षपातपूर्ण और रूढ़िवादी प्रश्नों से भी बचा जाना चाहिए।
7 स्पष्ट भाषा- प्रश्नों में चयन में सावधानी बरती जानी चाहिए बल्कि भाषा की स्पष्टता पर भी ध्यान देना चाहिए। स्पष्ट भाषा उत्तरदाता आसानी से समझ जाते हैं। इसमें कठिन, अस्पष्ट, अप्रचलित दुरूह और क्लिष्ट शब्दों का चयन नहीं किया जाना चाहिए। बहु अर्थी, भावात्मक और अनुमानित सूचना वाले शब्दों का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। स्पष्ट भाषा के साथ- साथ प्रश्नावली की इकाइयॉं भी स्पष्ट होना चाहिए।
8 क्रमबद्वता- प्रश्नावली का निर्माण करते समय प्रश्नों को स्वाभाविक रूप से क्रमबद्व और व्यवस्थित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। साथ ही प्रश्नों के परस्पर अंतर्सबंद्वता का गुण भी होना चाहिए । इससे प्रश्नों में तारतम्यता बनी रहेगी एवं प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अगले प्रश्न के उत्तर के लिए पूरक कार्य करेगा। अधिक प्रश्नों को शिर्षक और उपशीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है। गलत, व्यंग्यात्मक, दकियानूसी, कल्पनात्मक और प्रभावशील प्रश्नों को इसमें शामिल नही किया जाना चाहिए।
9 बाह्य आकार - प्रश्नावली में प्रश्नो के निर्माण के साथ-साथ उसमें भौतिक बनावट का भी महत्व होता है। उत्तरदाता के पास नही होने के कारण प्रश्नकर्ता उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रश्नावली की बाहरी आकृति जैसे - उसका आकार, कागज, छपाई और रूप रंग आदि पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक होता है। प्रश्नावली के बाहरी आधार के अन्र्तगत निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए।
1 आकार - प्रश्नावली का निर्माण करते समय इसे आकर्षक आकार में निर्मित किए जाने की आवश्यकता होती है। इसे सामान्यतः फुलस्केप आठ बाय बारह और नौ बाय ग्यारह के आकार के कागज पर बनाया जाना चाहिए। लंबे लिफाफे में मोड़कर रखने के कारण यह आकार बहुत उपयुक्त होता है। कम पृष्ठ होने से डाक खर्च भी कम आता है। साथ ही इसे उत्तरदाता तक भेजना भी आसान हो जाता है।
2 कागज- प्रश्नावली का निर्माण करते समय उसके कागज पर ध्यान देना आवश्यक होता है। यह कागज चिकना, कड़ा और टिकाउ होना चाहिए। इसका आकर्षक स्वरूप प्रश्नावली को सुंदर बनाता है। जबकि खुरदरा कागज न केवल जल्दी फट जाता है साथ ही इसकी छपाई भी अच्छी नहीं होती है। एक जैसे शोध के लिए भेजे जाने वाली प्रश्नावलियां अलग अलग कागज पर होना चाहिए।
3 छपाई- प्रश्नावली को अक्सर या तो छाप दिया जाता है या साइक्लोस्टाइल करवाया जाता है। इन दोनों ही तरीकों में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि छपाई शुद्ध और स्पष्ट हो ताकि आसानी से इसे पढ़ा जा सके । स्याही न फैले इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
4- हाशिया छोड़ना- प्रश्नावली का निर्माण करते समय बायीं ओर 3 बाय 8 और दायीं ओर 1 बाय 7 या 1 बाय 6 का हाशिया छोड़ना चाहिए। इस स्थान पर टिप्पणी लिखी जा सकती है। इसमें शब्दों और दो प्रश्नों के मध्य स्थान छोड़ा जाना चाहिए।
5 प्रश्नावली की लंबाई- प्रश्नावली का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसमें प्रश्नों की संख्या इतनी नहीं होना चाहिए कि संपूर्ण प्रश्नावली अनेक पृष्ठों में छप सके। लंबी प्रश्नावली से उत्तरदाता की रूचि खत्म हो जाती है। इसकी लंबाई इतनी होना चाहिए कि इसे कम से कम आधे घंटे मेें भरा जा सके। अभी तक पचास पृष्ठों तक वाली प्रश्नावली उपयोग में लाई जा चुकी है।
6 रूप- रंग- प्रश्नावली का निर्माण करते समय उसके रूप रंग भी ध्यान देना चाहिए। प्रश्नावली इतना आकर्षक होना चाहिए ताकि उत्तरदाता उस पर लिखने के लिए बेताब हो जाए। इस पर अक्षर स्पष्ट होना चाहिए साथ ही कागज मोटा और अच्छा होना चाहिए। रंगीन कागज का प्रयोग से यह और भी आकर्षक हो जाता है। इस प्रकार यह पता चलता है कि प्रश्नावली का निर्माण करते समय उसके रूप रंग और बाहरी आकर्षण पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
7 मदों की व्यवस्था- प्रश्नावली का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसमें एक विषय से संबंधित सभी प्रश्नों को एक साथ एक क्रम में लिखा जाए। आवश्यकतानुसार प्रश्नों को विभिन्न उपसमूहों में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। प्रश्नावली में शीर्षक, उपशीर्षक एवं सारणियों आदि सही क्रम में छपे होने चाहिए जिससे अध्ययन करने में सुविधा प्रतीत हो।
              
                इस तरह हम कह सकते है। प्रश्नावली के निर्माण में न केवल प्रश्नो पर ध्यान देना चाहिए साथ ही इसके बाहरी स्वरूप पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है..अनिल अत्री .........

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