ये पब्लिक है सब जानती है ये ओमपुरी कि बात पर भी अमल कर सकती है
अनिल अत्री .
निगम चुनाव नजदीक आते ही नेताओं के आई बहार . आजकल बडे नेताओं के चारों तरफ निगम कि टिकट चाहने वाले नेताओं कि भरमार है . जो नेता पहले कभी दिखाई नही दिये पार्टी के किसी लोकसभा व विधानसभा चुनाव में दिखाई नही दिये वे लोग भी आजकल टिकट के लिए बड़े नेताओं को खुश करने में लगे है ..इनके चारों तरफ नजर आते है . लेकिन बडे नेताओं को सभी को साथ लेकर चलना होता है इस कारण वे सभी को बराबर सम्मान दे रहे है . नये लोगों को ज्यादा सम्मान मिलने से पूरे कार्यकर्ता डर गये है . पुराने कार्यकर्ता इस बात से डर गये है कि कहीं नये नेता पैसे के बल पर टिकट न ले जाये . नए नेता महेंगें व बड़े बड़े होर्डिंग लगा रहे है . कहीं कपडे जूते सामान गरीबों में बांटकर टिकट का रास्ता साफ कर रहे है . जिन्हें कभी गरीबों पर हमदर्दी नही आई आजकल वे अचानक गरीबों को सामान बाट रहे है. चलो जो भी हो गरीबों को कुछ तो मिला . पर ये फ्री में नही मिलता नजर आ रहा है ये नेता बदले में इनका कीमती वोट आने वाले चुनाव में मांगते नजर आयेगें ....दूसरी ख़ास बात ये कि ये सामान बडे नेताओं या टिकट बांटने वाले नेताओं से बटवाये जा रहे है इससे साफ है कि ये सब टिकट का खेल है . लेकिन अकेला वोट का खेल होता तो लोग घर घर जाकर सामान गरीबों में बाँट सकते थे पर टिकट बडे नेता से लेना तो उसके हाथ से बंटवा दो कंबल . एक हजार कंबल बांटे जायेगे तो एक हजार लोग तो वैसे ही जमा हो जायेगे और बडे नेता भीड़ देख खुश . बड़े नेता के हाथ से कंबल बंट रहे है और छोटा नेता बंटवा रहा है और पैसा आम कार्यकर्ता का लग रहा है . ये भी हो सकता है कि कंबल बांटने वाले नेता ज्यादा हो जाए आपसी झगड़ा हो और टिकट नया चेहरा ले जाए . लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है ये ओमपुरी कि बात पर भी अमल कर सकती है . लोग इनके कंबल , जूते , कपड़े भी भेट लेगें और वोट मर्जी से देंगे .
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