Friday, January 22, 2010

MBA.... राजीव की कामयाबी में राजीव का जितना अहम रोल हें उतना ही अहम रोल इनके पिता व उन साथियों का हें

Anchor - जब होसले बुलंद हो ..... सोच बड़ी हो ... मेहनत करने का जजबा हो तो इन्सान कठिन परिस्थितियों व संसाधनों के अभाव में भी सफलता के झंडे गाड़ सकता हें ...... बस किसी कार्य मे असफल होने पर भाग्य को दोषी न मानकर पूरा शक्ति व निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्ति मे जुट जाइये। अपनी आंख अर्जुन का भांति सिर्फ अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रीत रखिये। कोई भी काम एक दिन में नहीं सफल होता। काम एक पेड़ की तरह होता है। पहले उसकी आत्मा में एक बीज बोया जाता है, हिम्मत की खाद से उसे पोषित किया जाता है और मेहनत के पानी से उसे सींचा जाता है, तब जाकर सालों बाद वह फल देने के लायक होता है। ऐसे ही बुलंद होसले वाले, अभावों में भी सफलता के झंडे गाड़ने वालर शख्श हें साउथ दिल्ली के बाईस वर्षीय राजीव गुप्ता ... जो एक पेशे से गरीब परिवार में पैदा हुए ... छोटी सी झुग्गी में रहते हें .... एक झुग्गी में घर के सात मेंबर .. सोते टाइम सभी मेंबर इक्कठे सो भी नही सकते एक को जागना भी पड़ता हें ..... बारिस हो तो झुग्गी से पानी भी बारी बारी घर के मेंबर निकालते हें ... छत फटी हें .... लाईट भी ना हो ... ऐसे परिथितीयों में इस घर का ये लड़का राजीव दिन रात मेहनत करता रहा .. और अपनी पढाई में सफलता के झंडे गाड़ दिए ..... इन्होने इतनी लग्न से पढाई की की कोठी बंगले , कोचिग सभी को पीछे छोड़ दिया .... इनकी पढाई के बल्भुते पर आज इनके पास भारत की कई नामी कम्पनियों के ऑफर आ चुके हें ... इन्होने कठिन मेहनत से गरेजुएसन की .. फिर एम्. बी. ए . की ... आज इस झुगी के बालक को एक निजी कम्पनी ने सताईस हजार महीने की नोकरी दे दी हें .. इनके काम को देख दूसरी एक कम्पनी अब इस झुग्गी के बालक को 40000 / ( चालीस हजार रूपये ) की नोकरी की पेशकस कर चुकी हें .... कहते हें कीचड़ में गिरने पर भी हीरे की कीमत कम नही होती .. ऐसे ही शख्श हें ये बाईस वर्षीय राजीव गुप्ता जो साउथ दिल्ली के लाजपत नगर की रेलवे लाइन के पास बनी इस झुग्ग्यों में रहते हें .. ये छोटी सी झुग्गी हें राजीव का मकान ... इसी झुग्गी में रहता हें राजीव अपने माता पिता , तिन बहने . दो भाई .. कुल मिलाकर सात मेंबर इसी झुग्गी में गुजर बसर कर रहें हें ..... इसी झुग्गी से राजीव आगे बडा हें ... राजीव जब छटी क्लास में था तब ये परिवार दिल्ली आया था ...... और झुग्गियों में बसेरा किया था ... झुग्गी में लाईट नही थी राजीव बाहर रोड पर जाता स्ट्रीट लाईट के निचे बैठकर पडता उसे राहगीर भी टोकते पर राजीव कभी रोड पर लाईट में .. कभी आस पास के पार्क में ... कभी झुगियों में बने इस छोटे से मंदिर में अपनी पढाई करता .... खुले आसमान के निचे ही राजीव ने अपनी पढाई पूरी की .पढाई ही नही राजीव को स्कूल से आने के बाद घर का सारा काम करना पड़ता था .. राजीव का माँ लम्बी बिमारी से पीड़ित हें .. खाना भी राजीव ही बनाता था .. .इन्होने इतनी लग्न से पढाई की की कोठी बंगले , कोचिग सभी को पीछे छोड़ दिया .... इनकी पढाई के बल्भुते पर आज इनके पास भारत की कई नामी कम्पनियों के ऑफर आ चुके हें ... इन्होने कठिन मेहनत से गरेजुएसन की .. फिर एम्. बी. ए .......... अब आप सोच रहे होगे ..की इतनी गरीबी में एम् बी ए तक की पढाई का खर्च कहा से आया... किताबे , कॉलेज फीस , एग्जाम फीस कहा से आई ? ? ? अब आप सोच रहे होगे ..की इतनी गरीबी में एम् बी ए तक की पढाई का खर्च कहा से आया... किताबे , कॉलेज फीस , एग्जाम फीस कहा से आई ? ? ? जब मन में लगन हो तो कोई न कोई सहारा मिल ही जाता हें ... कुछ सहारा कुछ खुद की हिम्मत तो कोई भी काम नामुमकिन नही हो सकता .. ऐसा ही हुआ हें राजीव गुप्ता के साथ .... पिता जी माली का काम करते वो भी नो सो रूपये महिना ... ऊपर से पूरे परिवार का खर्च ..ऐसे अपनी पढाई करना इनके लिए एक चुनोती थी .... इन्होने दसवी तक की पढाई में कई लोगों का सहारा मिला .. विशेषकर ये अपने एक साथी आन्नद का सहयोग विशेष मानते हें .... जो किताबो में .. कभी मोटिवेशन में सहायता करते थे .... फिर स्कूल से भी इन्हें सहायता मिल जाती थी .... किताबे स्कूल ने दिलवा दी थी .. दसवी के बाद राजीव ने झुग्गियों में ही बच्चों को टयूसन पढाना शुरू कर दिया... दिन में राजीव खुद पढने जाता और शाम को टयूसन पढाता और अपनी पढाई का खर्च निकालना शुरू कर दिया .. ग्रेजुवेशन तक तो ये जेसे तेसे चल गया पर आगे एम् बी ए का खर्च इस टयूसन से निकलना संभव नही था ... अब जरूरत थी एजुकेसन लोन की ... अपनी पढाई को इस मुकाम तक पहुचाने के लिए म्हेगी फीस की जरूरत थी जो इन झुग्गी के टयूसन से संभव नही थी ... अब लोन का विचार तो राजीव ने बनाया पर झुग्गी पर लोन कोण बैंक देगा ... कई बैंको के चक्कर राजीव ने काटे .. आखिर गारंटर की भी जारूरत पड़ गई अब गारंटर कोन बने ... आखिर कार कुछ लोग फिर सामने आये जिन्हें राजीव की काबलियत पर भरोषा था ... एन सी आर टी में अधिकारी सुमन चंदर धीर जो किताबो से इनकी मदद करते थे .. ये बैंक के गारंटर भी बने और राजीव का एजुकेसन लोन भी पास हो गया .. अब राजीव अपनी पढाई भी करता और टयूसन आदि देकर लोन भी साथ साथ चुकाता .... अब इन्हें 40000 / ( चालीस हजार रूपये ) महीने की नोकरी मिल गई हो सकता हें ये झुग्गी छोड़ कही जल्दी ही कोई अछा मकान बना लेगे ... पर यहा की यादे ये कच्ची दीवारे ये कभी नही भूल सकते जिनके सहारे ये यहा तक पहुचे .... ये अपने सहयोगकर्ताओं व माता पिता का बार इस बात से शुक्रिया करते हें की उन्होंने कभी भी उनका होसला कम नही होने दिया ,... अब इनका लक्षय ये नोकरी नही ये एक आई ए एस बनना चाहते हें और इस नोकरी के साथ साथ इन्होने ये तेयारी शुरू कर दी हें ...... होसले बुलंद कर रास्तो पर चल दे, तुजे तेरा मुकाम मिल जायेगा, अकेला तू पहल कर, काफिला खुद बन जायेगा जो सफ़र इन्त्यार करते है, वही मंजिलो को पार करते है, बस एक बार चलने का होसला तौ रखिये, ऐसे मुसाफिरों का रास्ते भी इन्तेजार करते है अनिल अत्तरी सहारा न्यूज ब्यूरो स्टोरी - राजीव की कामयाबी में राजीव का जितना अहम रोल हें उतना ही अहम रोल इनके पिता व उन साथियों का हें जिहोने इन्हें इस मुकाम तक पहुचाया .... जिन्होंने इनकी काबलियत पर विश्वास किया ... इनके होसले को कभी कम नही होने दिया .... चाहे किताबे देने वाले शख्श हो .. चाहे इन्हें एम् बी ए के लिए फ्री कोचिग का इंतजाम करवाने वाले पार्षद ... चाहे लोन पास करवाने वाले ... चाहे लोन में गारंटर बनने वाले ... सभी का अपना अपना रोल हें .. और ये सब इनकी कामयाबी देखकर काफी खुश हें ...... जिन लोगो ने राजीव के वे दिन देखे आज वे इनकी सफलता को देख काफी खुश हें ... ये शख्श हें आन्नद जो खुद एक एम् सी डी स्कूल हें टीचर हें इन्होने शुरू से राजीव के वे दिन देखे ...इन्होने खुद इन्हें झुग्गी से पानी उलेचते हुए देखा .. समय समय पर राजीव की हेल्प भी की आज ये राजीव सफलता देख काफी खुश हें राजीव के पिता जी जिन्होंने खुद चाहे कितनी मुसीबत झेली हो पर बेटे की पढाई बाधित नही होने दी ...... इनकी भी सोच यही थी की यदि मन में तम्मना हो तो कोई भी काम मुस्किल नही हो सकता .... शुरू से इनके पिता जी की भी यही धारणा थी जिसने ऐसे संस्कार दिए ...... अब इनके पिता जी भगवान् का शुक्रियादा करते हें ...... आखिर में राजीव पर ये पंकतिया फिट बैठती हें .... " ठोकरे इंसान के इरादे आजमाती हें , ठोकरे इंसान को काबिल बनाती हें ... ठोकरे खाकर निराश न हो ए मानव ये ठोकरे ही वक्त पर काम आती हें ... अनिल अत्तरी सहारा न्यूज ब्यूरो

2 comments:

  1. atyant prernadai.....Rajeev ko dheron badhaiyan.

    anil ji aap bhi badhai ke paatra hai kyunki aapne ye prernadai kahani hamare saamne pash ki hai.

    dhero subhkaamanaayein...

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  2. mere paas koi shabd nahi hai ki aap ka shukriya kaise kru....aaj aapne aur Ram Veer bhaiya ne mere sapne ko haqiqat me bana diya....


    aapka sneh aur margdarshan hmesa mujhe milta rahega isi aas ke sath aapka bahut bahut DHANYABAAD....
    Aapka Anuj:-
    RAJEEV GUPTA (MBA)
    09811558925

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