Wednesday, December 23, 2009

भूषण का युग बोध .. KAVI BHUSHAN

भूषण का युग बोध
भूषण रीतिकाल के ऐसे कवि हैं जिन्होंने रीतिकालीन शृंगार भावना के स्थान पर वीर रस की कविता लिखी। इन्होंने महाराजा शिवाजी और बुन्देला वीर छत्रसाल की प्रशंसा में काव्य रचना करते हुए तीन प्रमुख ग्रन्थ लिखे- शिवराज भूषण, शिवा बावनी और छत्रशाल दशक। शिवराज भूषण एक विशालकाय ग्रन्थ है जिसमें 385 पद्य हैं। शिवा बावनी में 52 कवितों में शिवाजी के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है जबकि छत्रशाल दशक में केवल दस कवितों के अन्दर बुन्देला वीर छत्रसाल के शौर्य का वर्णन किया गया है।
...........देवल गिरावते फिरावते निशान अली,
ऐसे डूबे राव राने सबै गए लबकी।
गौरा गनपति आय, औरंग को देखि ताप,
अपने मुकाम सब मारि गए दबकी।।
............
पीरा पयगम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत,
सिद्ध की सिधाई गई, रही बात रब की।
कासी हूँ की कला गई मथुरा मसीत भई
शिवाजी न होतो तो सुनति होती सबकी।।
.... उपरोक्त पद्यों से साफ हो जाता है कि उस समय परिस्थिति कैसी थी...
ANIL ATTRI

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