1.अद्वैत सम्प्रदाय - इसके प्रवर्तक आदि गुरू शंकराचार्य थे। इनके अनुसार ब्रह्म व जगत में किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं है, ब्रह्म ही सत्य है, जगत तो असत्य है।
2.श्री सम्प्रदाय - इसके प्रवर्तक रामानुजाचार्य थे। इनका दार्शनिक मत था विशिष्टाद्वैत। इसके अनुसार जीव ब्रह्म से ही उत्पन्न हुआ है। जीव का कल्याण ईश्वर के ही हाथों में हैं।
3.ब्रह्म सम्प्रदाय - इसके प्रवर्तक माध्वाचार्य थे। इनका दार्शनिक मत द्वैतवाद कहलाता है। इनके अनुसार जीव ब्रह्म से ही उत्पन्न है.. दोनों की अवस्थाओं में अन्तर है। जीव पराधीन है जबकि ब्रह्म स्वतंत्र।
4.हंस सम्प्रदाय - इसे सनकादि सम्प्रदाय भी कहते हैं। इसके प्रवर्तक निम्बार्काचार्य हैं। इनका दार्शनिक मत द्वैताद्वैतवाद कहलाता है। इस मत के अनुसार ब्रह्म और जीव में पारस्परिक भिन्नता भी है और अभिन्नता भी।
5. वल्लभ सम्प्रदाय - इसके प्रवर्तक वल्लभाचार्य हैं। इनका दार्शनिक मत शुद्धाद्वैतवाद कहलाता है। इसके अनुसार माया ईश्वरीय सत्ता की दास है। जीव को आन्नद व पीड़ा दोनों मिलते हैं।
6. रुद्र सम्प्रदाय - इसके प्रवर्तक विष्णु स्वामी हैं। इनके अनुसार शुद्ध ब्रह्म मायारहित है।
7. गौड़ीय सम्प्रदाय - इसके प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु माने जाते हैं। इनका दार्शनिक मत अचिंत्य भेदअभेद( भेदाभेद ) है। इस मत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ही विभिन्न रुपों में अवतीर्ण होते हैं।
ANIL ATTRI
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