" विशिष्ट पद रचना रीति :" आचार्य वामन
रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन ने "रीतिरात्मा काव्यस्य " कहकर रीति को काव्य कि आत्मा माना I वामन ने गुणों से सम्पन्न पदरचना को रीति कहा I इनका कथन हैं कि जेसे रेखाओं मैं चित्र समाविष्ट हो जाता हैं उसी प्रकार वेदर्भी , गोड़ी , पांचाली इन रीतियों मैं पूरा काव्य समा जाता हैं I वे तो यहाँ तक कहते हैं कि सर्वगुण सम्पन्न वेदर्भी रीति से युक्त होने पर तुच्छ काव्य भी आनन्द वर्षण करने लगता हैं ............
आनन्द वर्धन ने वामन के मत का खंडन किया और रीति को काव्य कि आत्मा नही माना I इनके अनुसार रीति गुणों पर आश्रित हैं और गुण रस के धर्म हैं इसलिए रीति मूलत: रस पर आश्रित होने काव्य कि आत्मा नही मानी जा सकती I
मैं तो आचार्य वामन से सहमत हूँ बिना रीति गुणों भी स्वादिष्ट नही रहेगें ....................
अनिल अत्री दिल्ली
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