Saturday, February 5, 2011

80 साल कि नेत्रहीन बुजुर्ग महिला को उसकी ओलाद ने सडक पर निकाल दिया
















कहते हैं हम सदा माँ बाप के ऋणी रहते हें ..इनके एहसान हम पूरी जिन्दगी भी नही चुका सकते ...पर कुछ कलयुगी ओलाद इस बात को भूल जाती हैं ...और माँ - बाप जो पूरी जिन्दगी बच्चे का लालन पालन करते हैं ......उसके दुःख दर्द भी अपने उपर लेते हैं पर कलयुगी ओलाद बुजुर्ग माँ बाप को भी धक्के देकर बाहर सडक पर खड़ा कर देती हैं .... ऐसा ही दिल दहलाने वाला मामला आया देश कि राजधानी दिल्ली के करोल बाग़ से ....जहां 80 साल कि नेत्रहीन बुजुर्ग महिला को उसकी ओलाद ने सडक पर निकाल दिया और ये तीन बच्चों कि बुजुर्ग pighal माँ आज करोल बाग़ कि सडक पर वीरवार शाम बेसहारा हैं .....आने जाने वाले राहगीरों का दिल रहा हैं पर इसके अपने खून का दिल नही पसीजा .. ....
............... कैमरे के सामने लड़तीं ये महिलाएं 80 वर्षीय नेत्रहीन निर्मला प्रभाकर कि बहुएं हैं ----जो जायदाद के लिए इस तरह कहीं भी लड़ने से परहेज नहीं करती हैं ----हलांकि इनके लड़ने का बहाना तो इस बुजुर्ग महिला कि जिम्मेदारी है मगर असलियत मे ये लड़ाई करोल बाग के पौस इलाके कि ये जायदाद है -----जो निर्मला जी के नेत्रहीन पति ने अपने अंतिम समय मे अपनी पत्नी और अपने छोटे बेटे के नाम आधी आधी कर दीया था --- इसके आलावा निर्मला जी के दो और बेटों के पास भी अच्छी खासी सम्पति है मगर उसके बावजूद बीती रात से ये बुजुर्ग नेत्रहीन महिला इसी मकान के सामने इस ठंढ मे समय बिताने को मजबूर है ----निर्मला जी कि माने तो उनकी शादी भी इसी मकान मे हुई थी और उनका समान भी अन्दर पड़ा हुआ है मर कल से इन्हें बहार निकल दिया गया है ----





अनिल अत्री दिल्ली ...........................

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निर्मला जी और इनके स्वर्ग्वाशी पति ये दोनों नेत्रहीन दम्पति इसी मकान मैं दो म्यूजिक स्कूल चलाते थे ....और उसी जमा पूँजी से ये मकान करीब पन्द्रह साल पहले इन दम्पतियों ने खरीदा ...एक उपर का हिस्सा सबसे बडे बेटे को दे दिया ..और बीच के बेटे को पटेल नगर मैं दूसरा मकान दिला दिया ...स्वर्गीय ओम प्रकाश प्रभाकर को अपने बच्चों कि नियत का शायद पता था इसी लिए उन्होंने आखरी सम्पत्ति अपने छोटे बेटे के अलावा अपनी पत्नी के भी नाम कर दिया था ----मगर सबसे छोटे बेटे ने आखिर वो कर ही दिया जिसका इस नेत्रहीन दम्पति को शक था --- सबसे छोटे बेटे राकेश ने ये सम्पति धोखे से खुद के और अपनी पत्नी के नाम करा कर बेच दिया ----चूँकि माँ कि सम्पति मे सभी बेटों का हक़ होता इसलिए सम्पति के बिकने कि खबर मिलते ही दूसरी बहु भी माँ को अपने साथ ले जाने के बजाय अपने हक़ के लिए लड़ने चली आई ---

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कहते हैं कि माँ बाप तो कई बच्चे पल लेते है मगर कई बच्चे मिल कर भी एक माँ बाप को नहीं पाल सकते ----इन कलयुगी बेटों ने इस कडवे सच को एक बार फिर दुहरा दिया -----आज कल तो कोई भी माँ बाप श्रवन कुमार कि चाह नहीं करता मगर ये भी नहीं चाहता कि जिन बच्चों के लिए वो पूरी जिन्दगी अपने अरमानो का गला घोंटे रहते हैं वो उन्हें उनके अन्तिम समय मे जायदाद के लिए ऐसी ठंढ मे तो बेसहारा छोड़ कर न चले जाएँ



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