Wednesday, May 19, 2010

विकसित होती दिल्ली ने खुद को बदल लिया लेकिन उसको इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है ....दिल्ली के विकास से प्रयावरण को बड़ा नुक्सान हुआ है लेकिन यदि जनप्रतिनिधि, पब्लिक और प्रशासन नरेला से सबक ले तो पर्यावरण का संकट खाफी हद तक कम हो सकता है ...........नरेला लामपुर रोड पर जब पेतिस करोड़ की लागत से रेलवे अंडरपास का काम शुरू हुआ तो इसकी आड़ मै तिस से पेतिस पेड़ आ गये .ये पेड़ पचास से सो सो साल पुराने थे ..इतने बड़े की एक एक पेड़ के निचे तिन तिन दुकाने चलती थी ..इन पेड़ों को हटाने की अनुमति भी मिल गई लगा की इन पेड़ों की मोत अब निश्चित है . ..लेकिन कुछ लोगों की मदद से इन सो सो साल पुराने पेड़ों को वहा से जे सी बी द्वारा उखाड़ क्रेनों से दूसरी जगह लगाया गया और वहा ये बड़े बड़े ठूठ हरे भरे हो गये ...इन पेड़ों को बचा लिया गया ...अब ये पेड़ ज़िंदा है और बचाने वालों मै कईयों का हाथ है वो शख्स जिसने शुरुवात की ..वो लकड़ी वाला ठेकेदार जिसने फ्री मै ये पेड़ों के तने छोड़े, वो लोग व प्रशासन जिन्होंने फ्री मै इन पेड़ों के लिए करेन , जे सी बी व पानी के टेंकर अरेंज कराये ..........ऐसी मुहीम की शुरूवात की मोहन भारद्वाज ने .........
वि ओ १ ये छोटी छोटी कोपलों से हरे भरे ठूठ भी कुछ कह रहे है ... ये भी शिक्षा दे रहे है की यदि हम चाहे तो बड़े बड़े पेड़ों को भी ज़िंदा दूसरी जगह लगाकर उनकी काटने से जान बचा सकते है ....... नरेला लामपुर रोड पर जब पेतिस करोड़ की लागत से इस रेलवे अंडरपास का काम शुरू हुआ तो इसकी आड़ मै तिस से पेतिस पेड़ आ गये .ये पेड़ पचास से सो सो साल पुराने थे ..इतने बड़े की एक एक पेड़ के निचे तिन तिन दुकाने चलती थी ..इन पेड़ों को हटाने की अनुमति भी मिल गई लगा की इन पेड़ों की मोत अब निश्चित थी .... ये गडे ही बता रहे है की पेड़ कितने बड़े रहे होगे ....इस अन्डर पास का काम युद्ध सत्तर पर जारी है .....इन पेड़ों को भी हटाना जल्दी से जल्दी जरूरी था ...... पेड़ उपर से काट दिए गये और खोदने का काम शुरू होने लगा .. लेकिन इस शख्स मोहन भारद्वाज का ध्यान इन पेड़ों पर गया की इतने पुराने पेड़ मर जायेगे ...इन्होने ठानी की ये पेड़ों को मरने नही देगे.... इन्होने लकड़ी खरीदने वाले ठेकेदार से बात की और ये तने यही छुट्वा लिए .. फिर अन्डर पास बानाने वाली कम्पनी की करेन व जे सी बी मांगी यहा से उखाड़ा और थोड़ी दूर सरकारी जमीन पर गड्डे खोदे और उनमे ये पेड़ रोपे ..... और टेंकरों से पानी दिया गया .. और कुछ ही दिनों मै ये ठूठ हरे भरे हो गये .........
बाईट - मोहन भारद्वाज ( सफेद कुरते पायजामे मै )
वि ओ २ इतने बड़े काम मै कोई खर्च नही बल्कि सभी सेवाए फ्री मै मिली लोगों ने अलग अलग महकमों ने भी मदद की बदले मै एक पैसा भी नही लिया और एक उदाहरण पेश किया .. कोमन्वेल्थ मै हजारों पेड़ काटे गये बदले मै हजारों नये पेड़ लगाये भी गये पर ये नये पेड़ कही दिखाई नही दे रहे है ..ऐसे प्रशासन को यहाँ नरेला एक देहात का गावं शिक्षा दे रहा है की उन्हें ये पेड़ काटकर नये छोटे पोधे लगाने की जरूरत नही ..वे बड़े पेड़ों को ज्यों का त्यों बचा सकते है .........एसा इन्होने कर दिखाया है ..यदि कोमन्वेल्थ के नाम पर पेड़ काटने वाले इनसे शिक्षा लेते तो हजारों पदों की जान बच जाती ...और हमें शुद्ध हवा देने वाले पेड़ कम नही होते ....अब यही शिक्षा मोहन भारद्वाज दे रहे है और सहयोग देने वालों का भी धन्यवाद कर रहे है ...क्योकि इनका मानना है की अकेले के बस की ये बात नही थी ये सब लोगों के सहयोग से हुआ .....
बाईट - मोहन भारद्वाज ( सफेद कुरते पायजामे मै ).
वि ओ ३ .....सरकारों को भी सबक लेना चाइये की वे बड़े बड़े पेड़ों को मारे नही बल्कि उनको दूसरी जगह रोपे .....इसके लिए अलग से कोई उपाए व तकनीक नही अपनानी पड़ती आप पहले जहा ये पेड़ लगाने है वहा गड्डा खोदिये फिर जड़ से जे सी बी द्वारा उखाड़ सेम डे मै उस गड्डे मै लगा दिगिये और पानी दे पेड़ कुछ ही दिनों मै दुबारा हरा भरा होगा ...........
बाईट - मोहन भारद्वाज ( सफेद कुरते पायजामे मै ).
वि ओ ४ इन चुनिदा लोगों ने इन पेड़ों को ऑक्सीजन दी और ये पेड़ अब सभी को ऑक्सीजन देगे ...... मोहन जी द्वारा शुरू किया गया ये आन्दोलन सभी के लिए आदर्श है...यही सबसे बड़ा धर्म है ..
अनिल अत्तरी सहारा न्यूज ब्यूरो ...........9717364000
बड़े-बड़े भक्त हैं भगवान के। पत्थरों को पूजते हैं। पेड़ कट रहे हैं। हमे प्राणवायु प्रदान करने वाले पेड़ हमारे सामने ही ध्वस्त हो जाते हैं। अखबार,टीवी और अन्य सभाओं में वक्ता भाषण करते हैं। मगर पेड़ कटने का सिलसिल थम नहीं रहा। लगाने की बात करते हैं। एक पेड़ को लगाना आसान नहीं है। पहले पौधा लगाओ और फिर उसकी रक्षा करो। घर के अंदर तो कोई लगाना नहीं चाहता और घर के बाहर अगर सरकारी संस्था लगा जाये तो उसकी देखभाल करने तक कोई तैयार नहीं। अनेक संस्थाओं ने भूखंड बेचे और सभी के मकानों में पेड़ पौधे लगाने के लिऐ नक्शें मेें जगह छोड़ी पर लोगों ने वहां पत्थर बिछा दिये। कई लोगों ने उस जगह पूजाघर बना दिये। ताकि लोग आयें और देखे कि हम कितने भक्त है और स्वर्ग में टिकट सुरक्षित हो गया है। उससे भी मन नहीं भरा बाहर पेड़ पौधे लगाने की सरकारी जगह पर भी पत्थर बिछा दिये कि वहां कीचड़ न हो। कहीं दुकान बनवा लिये।
एंकर - क्या पचास व सो सो साल पुराने पेड़ भी एक जगह से दूसरी जगह हम लगा सकते है ..जिन पेड़ों का तना दस दस फीट लंबा हो उन्हें भी दूसरी जगह ज़िंदा रोपा जा सकता है ...चाहे अपना घर हो या खेत हो चाहे कोई सडक या पूल के बिच आया पेड़ ..हम ऐसे पेड़ों को बचा सकते है .. ऐसा ही उदाहरण दिया देहात के एक गावं नरेला ने ...जहा एक इंसान ने शुरूवात की लोगों ने सहयोग दिया और दूसरी जगह लगाकर बचा लिया पेतिस पेड़ों को ..वे भी सो सो साल पुराने बरगद , नीम ,पीपल , सहतूत जेसे पेड़ों को .........
वि ओ १ जब ये पेड़ लगाये तो मोहन भारद्वाज का साथ देने वाले लोगों को भी विस्वास नही था की ये लग जायेगे ..कभी हरे होगे ..पर अधूरे ही सही पर मन से इन लोगों ने साथ दिया .. इन पेड़ों के ठूठों को पानी दिया ..जब हरे भरे हुए तो ये लोग हेरान हुए इन्होने फिर दुगुने उत्साह से इनकी सेवा शरू की ... ये हेरान भी थे .
बाईट - विनोद सिंह ( पानी देने मै सहयोग वाला इंसान ) - टेक्स्ट - शुरू मै तो ऐसा ही लग रहा था की ये इतने बड़े पेड़ केसे हरे होगे .पर अब हमारे सामने है .हेरानी तो है ...
वि ओ २ अब लोग इसे प्रेरणा स्रोत मानते है गाव के लडकों को कुश्ती सिखाने वाले इस कोच की सुनिए ये कहते है की ये अपने कुश्ती सिखने वाले बच्चों को कुश्ती के साथ साथ ये भी सिखायेगे की पेड़ केसे बचाए और इस तरह के कामों मै योगदान दे ................
बाईट - कुश्ती कोच
वि ओ ३ अब यहा लोग इस पेड़ों को देखने भी आते है और एक प्रेरणा लेकर जाते है ..यहा इस मुहीम मै काम करने वाले लोगों का दावा है की पूरी दिल्ली मै जहा भी चाहे एक पेड़ भी कटता हो लोग हमारी मदद लेना चाहे तो हम तत्पर है ...हम उस सिंगल एक पेड़ के लिए भी इतने ही उत्साह से काम करेगे और पेड़ को बचा लेगे .//..हम पेड़ बचाने की ये सेवा पूरी दिल्ली मै फ्री मै देगे ..कही से भी कोई भी पैसा नही लेगे ..बस हमें सुचना दे .
बाईट - जीतेन्दर खत्री ( मुहीम मै सहयोग देने वाले - पहचान -चश्मे मै व लाल शर्ट मै )
वि ओ ४ अब जरूरत है ऐसी मुहीम मै हम लोग भी साथ दे ...जो हमें ऑक्सीजन देते है उनके लिए भी हम कुछ करे .....पहले तो कोशिश हो पेड़ काटने न दे यदि काटना भी पड़े तो उसे मारे नही बल्कि दूसरी जगह लगाये और हमारी जान की रक्षा करने वाले पेड़ों की रक्षा करे ..............
अनिल अत्तरी सहारा न्यूज ब्यूरो
"हो सुन्दरतम अपनी ये धरा..
हो हरी भरी यह वसुन्धरा...
माता का रूप धरती धरती
निज सुत सम ही पालन करती..."
पर्यावरण के दुश्मन कहीं हमसे अधिक दूर नहीं है और न अधिक शक्तिशाली है पर अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से गुलामी की मानसिकता से लबालब इस देश में केवल बातें ही होती हैं। पेड़ इसलिये काट दो कि सर्दी में धूप नहीं आती या फिर घर में शादी है शमियाना लगवाना है।
अनिल अत्तरी सहारा न्यूज ब्यूरो
एंकर - नरेला बाकनेर के लोगो ने पेड़ रोपकर ही कारनामा नही किया बल्कि इनका एक और कारनामा इसी अंडर पास से जुडा है वो है की इन लोगों ने जब चार महीने पहले ये अंडर पास बन्ने लगा तो ये लोग मुवाजे के लिए कोर्ट नही गये ताकि काम लेट न हो जाए इन्होने अपने मकान व दूकान खुद तोड़ने शुरू कर दिए .....इनका मानना है की पहले अंडर पास का काम न रुके मुवाजा तो बाद की बात है ..आप देखिये ये केसे अपने आलीशान मकान तोड़ रहे है ....
वि ओ वन - बाहरी दिल्ली के नरेला से बाकनेर रोड हरियाणा को जोड़ता है .. और हर ओज हजारों वहिकल इस रूट से आते है ..इस कारण यहाँ रेलवे फाटक पर जाम रहता था ..अंडर पास का काम शरू हुआ ..दोनों साइड कई दुकाने व मकान चपेट मै आये ..लेकिन यदि मुवाजे की मांग की परक्रिया पहले चलती तो ये काम लेट हो सकता था ..लेकिन यहाँ के लोगों ने अपना कोपरेटिव रवेया दिखाया और अपने आप अपनी दुकाने तोड़ने लगे ..अपने कीमती मकान भी वो भी बिना कोई मुवाजा मिले बस इस कारण की अंडर पास लेट न हो ये किसी कोर्ट मै मुवाजे के लिए नही गये बल्कि खुद बे खुद अपने मकान तोड़ने लगे ....... लेकिन इनके मन मै कही न कही अपने मकान टूटने का दर्द जरूर है ..इनका कहना है की हम अपने आप तोड़ रहे है और चाहते जरूर है की उचित मुवाजा मिले ..हम ज्यादा भी नही चाहते जो ..जो सरकार का रेट है बस वो मिले और हमारा अंडरपास बन जाए ..
बाईट - प्रदीप स्थानीय निवासी ( टेक्स्ट हम अपने आप तोड़ रहे है और चाहते जरूर है की उचित मुवाजा मिले ..हम ज्यादा भी नही चाहते जो ..)
वि ओ २ - लोग इसे विकास से जुडा मुदा मानते है ..इनका माना है की वो बाद मै मुवाजे की मांग करेगे की जिसकी दूकान इसमें आई है उसकों दूकान व मकानों के भी पी डब्लू डी के जो रेट है उनकी मांग करेगे पर पहले अंडर पास बन जाए ये सब बाद मै मांगेगे और सरकार इनका विश्वाश है की तुरंत सुनेगी .
बाईट - जीतेन्दर खत्री ( स्थानीय निवासी - पहचान लाल शर्ट चस्मा )
मोहन भारद्वाज ( स्थानीय निवासी - सफेद कुर्ता पायजामा )
वि ओ थ्री - नरेला बाकनेर के लोगों की ये भावना पूरी दिल्ली ही नही देश के लिए एक सिख है की वे अपने एरिया के कामों मै रूकावट न डालकर बल्कि प्रशाशन की मदद करे ..आखिर काम तो जनता का ही होता है .इसलिए जनता को चाहिए की थोड़े से स्वार्थ के लिए काम मै बाधा न पहुचाये बल्कि नरेला के इन लोगों की तरह मदद करे ........
अनिल अत्तरी सहारा न्यूज ब्यूरो

1 comment:

  1. कहते हैं इन्सान का जमीर जिन्दा हो और वह इमानदार हो तो, वह नेक काम और जनहित के ही काम करेगा ,यही बात मोहन भारद्वाज जी ने साबित किया है / अच्छा प्रयास किसी नेक काम को ब्लॉग के जरिये सम्मानित कर लोगों तक पहुँचाने का /

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