Wednesday, December 2, 2009

अनिल कुमार अत्री.सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की सामाजिक- सांस्कृतिक दृष्टी

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की सामाजिक- सांस्कृतिक दृष्टी
छायावाद के चार स्तम्भों में एक हैं सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला । ये युगान्तरवादी कवि हैं। इनकी कविताओं में नवजागरण का सन्देश है, प्रगतिशील चेतना है। मानव की पीड़ा के प्रति तीव्र आक्रोश उनकी कविताओं में है व अन्याय के खिलाफ विद्रोह की भावना उनमें सर्वत्र व्याप्त है। इनकी प्रमुख रचनाओं में - अनामिका, परिमल, अपरा , गीतिका , वेला , नए पत्ते , तुलसीदास , कुकुरमुत्ता आदि हैं।
निराला की रचनाओं में आक्रोश व विद्रोह की भावना है जिसे डॉ0 रामबिलास शर्मा ने ओज और औदात्य कहा है। उच्च वर्ग की विलासिता एवं निम्न वर्ग की दीनता को देखकर ये अपने हृदय में गहन वेदना, टीस एवं छटपटाहट का अनुभव करते थे। इनके काव्य का मूल क्रान्तिकारी एवं विद्रोह भावनाओं से युक्त है। सामाजिक विषमता के कारन मानव कितना दयनीय बन गया है-

चाट रहे झुठी पतल वे भी सड़क पर खड़े हुए ।
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए ।।
-भिक्षुक
कभी बादल के माध्यम से गरीबों को क्रान्ति की प्रेरणा देते हैं..... पुंजीपतियों को वे आइना दिखाकर कहते हैं कि तुम्हारी ये रंगो आब, चमक दमक गरीबों के शोषण पर आधारित है। लाल बत्ती की गाड़ियों में घुमने वाले खुन तो साधारण जन का ही चुसा है... यथा-
अबे सुन बे गुलाब।
भुल मत, जो पाइ खुसबु रंगो आब।
खून चूसा है खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतरा रहा कैपेटलिस्ट।
-कुकुरमुत्ता
वह तोड़ती पत्थर कविता भी गरीबों के प्रति सहानुभूति से भरी हुई है-
वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहबाद के पथ पर
अनिल कुमार अत्री...

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