Saturday, October 24, 2009

रास्ते के पत्थर भी काम के होते है ...कुदरत की कलाकारी के नायाब नमूने होते है ..बस जरुरत है तो उन्हें तलाशने और तराशने की


लोकेशन.......अशोक विहार एंकर... रास्ते के पत्थर भी काम के होते है ...कुदरत की कलाकारी के नायाब नमूने होते है ..बस जरुरत है तो उन्हें तलाशने और तराशने की ...कुछ ऐसा ही कर दिखाया है अशोक विहार के मोहन लाल शर्मा ने ..बीस साल से पत्थर को तलाश कर घर की छत पर ऐसा रोक गार्डन बनाया की मोहन की कलाकरती किसी का भी मन मोह ले ..... इनके ये बिना काटे तरासे नमूने सभी का मन मोह लेते हें ..... वी ओ 1... 65 साल के अशोक विहार निवासी मोहन लाल शर्मा की नजरे हमेशा रास्ते के पथरो पर होती है ..उन्हें हर पत्थर में परमात्मा की या कुदरत की आकृति नजर आती है जिसे वे उठाकर ले आते है और जोड़कर दे देते है किसी न किसी आकृति का रूप ...उनकी घर की छत पर रोक गार्ड में रखी 300 से ज्यादा ये कलाकृति इनकी 20 साल की महेनत का नतीजा है ..इनकी कलाकृति आस्था और आध्यात्मिकता से प्रेरित होती है ..एक संदेश देती है ..देवी देवताओं की मूर्तियों के अलावा गुरु की महिमा , कबीर की चौपाल , गालिब की महफ़िल , इशु मसीह भगवान् बुध की मुर्तिया ऐसी की किसी का भी मन मोह ले.. कई बार इन्हें रास्ते से पथर उठाने में शर्म आती तो कई बार बढिया से बढिया पथर भी हाथ से निकल जाते हें ... जिसका इन्हें बाद में पछतावा भी होता हें .... बाईट - मोहनलाल शर्मा वी ओ 2 यदि इन्हें कोई स्पोंसर करे तो ये कुछ और बडा चमत्कार कर सकते हें ... अब ये पहाडो में जाकर बडे बड़े पथर डूड कर बड़ी बडी कला कृतियाँ बनाना चाहते हें ... बाईट मोहनलाल शर्मा वी ओ 3 ..दिल्ली नगर निगम के सैनिटेशन विभाग में सुपरितेंदेंत पड़ से सेवानिवार्ट हुए मोहन लाल के मन में यह ख़याल 20 साल पहले चंडीगढ़ के रोक गार्ड को देखकर आया था ..जिसमे पथरो के अलावा टाइल्स का प्रयोग हुआ है लेकिन मोहन लाल ने केवल पथरो को पथरो से जोड़कर ही ये कलाकृति बनाई है ...इनके परिजन पहले तो इन्हे सनकी मान रहे थे लेकिन जब देखने वालो की तारीफे मिली तो बाद में इन्हे भी अछा लगा ...और आज वे भी इनकी मदद कर रहे है ..... लेकिन समस्या इन्हें ये हें की इन्हें छत के ओवेरलोअड होकर गिर ना जाए .. ये चाहते हें की कोई इनको स्पोंसर करे ... इन्हें बाहर जगह मिले जिससे ये अपने काम को और बेहतर डंग से कर सके .....बाईट - प्रेम शर्मा ( पत्नी )  वी ओ 4 अब घर के छोटे छोटे बच्चे भी अपने दादा के लिए बाहर से पथर ले आते हें और इस काम में मदद करते हें .... मोहन लाल की इस छोटी पोत्री ने तो अपने दादा के काम में पूरी रुचि लेनी शूरी कर दी हें ... बाईट - Simran ( मोहनलाल की पोत्री ) वी ओ 5.....इस रोक गार्डेन के पीछे उनका कोई उद्देश्य नही है ..इनका कहना है की इससे उन्हें आत्मिक आनंद मिलता है ..वे प्रतिदिन दो घंटे अपने घर की छत पर ही बिताते है ..और घूमते वक्त उनकी नजरे हमेशा पत्थरो को खोजती है ...जिन्हें उठाते ही उनकी कल्पाना में कोई आकृति दिखाई देती है ..या उस आकृति का हिस्सा वह पत्थर नजर आता है ..और वह आकृति बन जाती है इस रोक गार्डेन का हिस्सा .... अब यदि इन्हें कोई स्पोंसर करे तो ये कुछ और बडा चमत्कार कर सकते हें ... अनिल अत्तरी सहारा न्यूज ब्यूरो ..

6 comments:

  1. बहुत अच्छा लगा लेकिन चित्रों का न होना बहुत खला

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  2. मोहनलाल जी पत्थरों का बढ़िया उपयोग कर रहे हैं। पत्थर मारने वाले इनसे प्रेरणा ले लेते ।
    घुघूती बासूती

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  3. बहुत खूब! अगर पिक्चर हो जाती तो और भी अच्छा होता। कुलवंत राय शर्मा अत्री

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  4. निश्चित ही चित्र चार चाँद लगा देते.

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  5. मोहन लाल शर्मा जी के बारे में जानकर अच्‍छा लगा .. अगले पोस्‍ट में चित्र की मांग को पूरी करें .. उम्‍मीद करती हूं कि इन्‍हें कोई स्‍पांसर मिल जाएगा .. शुभकामनाएं !!

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  6. उनकी प्रतिभा देखकर तो आशा हैं कि जल्द ही उन्हे कोई स्पांसर मिल सकेगा......
    पोस्ट में चित्रों की कमी तो रही.....

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